लोकसभा भदोही -2019 जाति राजनीति ही है मुद्दा

2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में विकास के मुद्दे पर भाजपा से सांसद बने वीरेंद्र सिंह के लोकसभा सीट भदोही में जमीनी मुद्दों पर जाति की राजनीति हावी हो गयी है। प्रमुख दलों के प्रत्याशी घोषित होने के बाद शुरू हुए चुनावी शोर में विकास का मुद्दा गायब है और सिर्फ जातीय गणित बिठा कर हर पार्टी और उसके नेता मैदान फतह कर लेना चाहते हैं।

1994 में गठित भदोही जनपद और 2009 के परिसीमन में मिर्जापुर से हट कर स्वत्रंत रूप से घोषित भदोही लोकसभा में आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन के साथ कालीन उद्योग से जुड़े प्रमुख मुद्दे हैं जहां तमाम मूलभूत आवश्यकताओं की जरूरत है। व्यवसायिक शिक्षा की डिग्री से जुड़े सरकारी शिक्षण संस्थानों की भदोही को आज भी इंतजार है तो यहां स्वास्थ्य के क्षेत्र में छोटी-मोटी बीमारियों के इलाज छोड़ दिये जाय तो सरकारी चिकित्सालय सिर्फ रेफरल हॉस्पिटल बनकर रह गए हैं। कहीं स्टाफ की कमी है तो कहीं आधुनिक उपकरणों की। जिला मुख्यालय पर आज भी सरकारी बसों की पहुंच न के बराबर है। ज्ञानपुर में बने रोडवेज बस स्टेशन के गेट पर ताला जड़ा रहता है तो जिला मुख्यालय स्थित दस्य वर्ष पहले शुरू हुए सौ बेड के जिला अस्पताल का निर्माण कार्य आज तक पूरा न हो सका बल्कि उसमे भ्रष्टाचार जम कर हुआ। कालीन उद्योग में बुनकरों की हालत खस्ता है। बुनकर इस उद्योग से पलायन करने को मजबूर है जिसका कारण कम मजदूरी के साथ सरकार द्वारा विशेष योजनाएं न बनाये जाने और सरकारी योजनाओं का ठीक तरीके से लाभ न मिल पाना है। चुनाव सामने है जिसके लिए यहां 12 मई को मतदान होना है। जातीय गणित को दुरुस्त रखने के लिए यहां मौजूद भाजपा सांसद वीरेंद्र सिंह की सीट बदल कर उन्हें बलिया भेज दिया गया । भाजपा ने बसपा से आये पूर्व विधायक रमेश बिंद, कांग्रेस ने भाजपा से आये पूर्व सांसद रमाकान्त यादव और बसपा ने पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा को मैदान में उतार दिया है। भाजपा ने बड़ी संख्या वाले बिंद मतदाताओं को साधने की कोशिश की तो कांग्रेस से मैदान में आये रमाकान्त ने अपने बयानों से जातीय कार्ड खेल दिया है। बसपा-सपा गठबंधन से रंगनाथ मिश्रा को भी ब्राम्हणों के साथ दोनो दलों के बड़े वोट बैंक अपने साथ आते दिखाई दे रहे हैं। हर जगह नेताओं में सिर्फ यही चर्चा है कि किस जाति का वोट किधर जाएगा। हर दल के नेता अपने अपने प्रत्याशी के जीत के दावे जातीय गणित के हिसाब से करने में जुटे हुए हैं लेकिन आने वाले चुनाव परिणाम के बाद ही यह साफ हो पायेगा जनता किसे अपना सांसद चुनती है।

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