बायोटेक सिस्टम से निर्मल होंगी गंगा-गोदावरी

इंडो यूरोपियन यूनियन प्रोजेक्ट ’स्प्रिंग’ के तहत आईआईटी(बीएचयू) को मिली जिम्मेदारी

वाराणसी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) भारत-यूरोपीय वित्त पोषित परियोजना के तहत गंगा और गोदावरी नदी में आने वाले सीवेज जल के शुद्धिकरण के लिए बायोटेक सिस्टम आधारित जल उपचार प्रणाली विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। परियोजना को भारत सरकार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा यूरोपीय संघ के सहयोग से वित्त पोषित किया जाता है। स्पिं्रग- स्ट्रेटजिक प्लानिंग फाॅर वाटर रिसोर्सेज एंड इंप्लीमेंटेशन आॅफ नाॅवेल बायोटेक्निकल ट्रीटमेंट साॅल्यूशन एंड गुड प्रैक्टिसेज परियोजना के कार्यान्वयन को जून 2020 से शुरू होने वाले 3 वर्षों की अवधि के लिए वित्त पोषित किया गया है।

 

संस्थान के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद कुमार जैन ने कहा कि परियोजना का प्रमुख लक्ष्य प्रदूषित पानी के लिए नवीन कम लागत वाले उन्नत जैव-ऑक्सीकरण उपचार प्रणाली का एक प्रोटोटाइप विकसित करना है। इस परियोजना में आईआईटी (बीएचयू) के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर प्रभात कुमार सिंह, डॉ शिशिर गौड़ और डॉ अनुराग ओहरी अग्रणी भूमिका निभाएंगे। वहीं, परियोजना के अन्य भागीदारों में आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी खड़गपुर और अन्य शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थान शामिल हैं। आईआईटी गुवाहाटी से प्रो संजुक्ता पात्रा परियोजना के लिए भारतीय समन्वयक हैं।

उन्होंने आगे बताया कि संस्थान वाराणसी में गंगा नदी के निर्मलीकरण के लिए एकीकृत रिमोट सेंसिंग का उपयोग करेगा। बायोटेक सिस्टम का उपयोग गोदावरी डेल्टा और गंगा नदी के चयनित स्थलों पर किया जाएगा। इन स्थानों पर जल निकायों के प्रदूषण के बिंदु और गैर-बिंदु स्रोतों की पहचान कर क्षेत्र परीक्षण और प्रोटोटाइप का परीक्षण किया जाएगा। विकसित प्रणाली का उपयोग नगर पालिका, गैर सरकारी संगठन या राज्य जल बोर्ड द्वारा होगा।

परियोजना में शामिल विदेशी भागीदार यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रोम्स, नॉर्वे (यूआईटी), यूनिवर्सिटी ऑफ पीईसीएस (यूपी), हंगरी, नॉर्दर्न रिसर्च इंस्टीट्यूट, नार्विक एएस (नॉरूट नरविक) एवं पुर्तगाल और हंगरी के शैक्षणिक संस्थान हैं। विदेशी साझेदार भारतीय पर्यावरणीय स्थिति और गंगा और गोदावरी नदी में आने वाले सीवेज से संबंधित प्रोटोटाइप विकसित करने के लिए जैव प्रौद्योगिकी आधारित उपचार प्रणालियों और सेंसर प्रणालियों से संबंधित अपनी विशेषज्ञता साझा करेंगे।

गंगा नदी के लिए, वाराणसी शहर के अपस्ट्रीम से लेकर कैथी के निकट गोमती नदी के संगम तक के प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है। असि और वरुणा नदी क्षेत्र भी अध्ययन का हिस्सा होगा। परियोजना श्ैच्त्प्छळश् अद्वितीय है क्योंकि पहली बार, यह नदी डेल्टा में एकीकृत रिमोट सेंसिंग का उपयोग करके बिंदु की पहचान और प्रदूषण के गैर-स्रोत स्रोतों के लिए भू उपयोग, भूमि कवर और जल संसाधनों के संबंध में भू स्थानिक विश्लेषण लागू करने की परिकल्पना करता है। वाराणसी के पास गंगा नदी, जैविक प्रदूषकों के उपचार के लिए एंजाइम जैव प्रौद्योगिकी आधारित एडवांस आक्सीडेशन प्राॅसेस (एओपी) और अध्ययन क्षेत्र में नए प्रदूषक की पहचान के लिए माइक्रोबियल फ्यूल सेल (एमएफसी) आधारित नोवल बायो सेंसिंग सिस्टम विकसित किया जाएगा।