कौन से नारे ने बदली राजनीति की फिजा
बदलते नारे बदलती राजनीति के संकेत देते इन नारे विपक्ष को हथियार भी देते है अबकी बार फिर मोदी सरकार, अबकी बार 400 पार, मोदी है तो मुमकिन है आदि नारे भाजपाइयों के बीच गूंज रहे हैं। इन सभी नारों पर भारी है पीएम मोदी द्वारा दिया गया ‘मैं भी चौकीदार’नारा है। इस नारे से भाजपा नेताओं ने सोशल मीडिया को रंग डाला है। वहीं कांग्रेस ने इसी नारे को नकारात्मक रूप में ‘चौकीदार चोर है’ रूप दे दिया है। इसके साथ ही राहुल गांधी ने अपने चुनावी एजेंडे को धार देते हुए नारा दिया है ‘गरीबी पर वार 72 हजार’। प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन से कोई खास नारा सामने नहीं आया है। ‘हमारा काम बोलता है’ नारा ही थोड़ा बहुत चल रहा है। ‘सांची बात प्रियंका के साथ’ कैंपेन भी कांग्रेस का चल रहा है। ‘कट्टर सोच नहीं युवा जोश’ और ‘मेरा वोट कांग्रेस को’ भी कांग्रेसी चला रहे हैं।
मौजूदा लोकसभा चुनावों में नारे पहले जैसे न रोचक रहे न ही हलके-फुलके तंजों से भरे तीखे वार करने वाले…। अब तो नारों की दुनिया सिर्फ और सिर्फ निजी हमलों पर केंद्रित हो गई है। एक वक्त था कि नेता लोगों को लुभाने के लिए रोचक नारे गढ़ते थे। कवियों, साहित्यकारों की टीम लगाई जाती थी। यह नारे न केवल सियासी बहार को धार देते थे बल्कि आम आदमी के जेहन में बरसों बरस याद रहते थे।
60 के दशक में नारों से दिया जाता था जवाब: 60 के दशक में जनसंघ और कांग्रेस के बीच नारों के जरिए जवाबी हमले किए जाते थे। जनसंघ का नारा था ‘जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल’। उस समय जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक था जबकि कांग्रेस का चिन्ह दो बैलों की जोड़ी थी। कांग्रेस ने जवाबी नारा दिया था ‘इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं’।
इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष ने दिए थे कई तीखे नारे: आपातकाल और नसबंदी अभियान के दौरान एक नारा चला था “जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मरद गया नसबंदी में…।” यह नारा इतना पापुलर हुआ कि आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को अपनी सरकार गंवानी पड़ी थी। 1977 में ही एक और नारा दिया गया था ‘नसबंदी के तीन दलाल ….’।
जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करतीं: डा. राम मनोहर लोहिया द्वारा दिए गए इस नारे को आज भी लोग याद कर ही लेते हैं।
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है: ‘दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ जेपी आंदोलन के दौर में रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता जनांदोलन की पंक्तियां बन गई थीं।
1984 में खूब चला था जब तक सूरज चांद रहेगा..
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने नारा दिया था ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा’। इसके साथ ही इंदिरा गांधी के भाषण का एक वाक्य ‘मेरे खून का अंतिम कतरा तक इस देश के लिए अर्पित है’ को कांग्रेस ने बतौर नारा प्रयोग किया था। इसी चुनाव में ‘उठे करोड़ों हाथ हैं, राजीव जी के साथ हैं’ भी खूब चला।
जात पर न पांत पर…मुहर लगाना हाथ पर
1977 में इंदिरा गांधी ने यह नारा दिया था. उस दौरान वो अपनी हर चुनावी सभा में अपने भाषण के अंत में एक ही वाक्य बोलती थीं- ‘वे कहते हैं, इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ, फैसला आपको करना है। इंदिरा के लिए साहित्यकार श्रीकांत वर्मा ने नारा लिखा था ‘जात पर न पांत पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगाना हाथ पर’।
लाल किले पर लाल निशान मांग रहा है हिन्दुस्तान
आजादी के बाद कम्युनिस्ट नेताओं ने नारा दिया था ‘देश की जनता भूखी है यह आजादी झूठी है’दूसरा नारा दिया था ‘लाल किले पर लाल निशान मांग रहा है हिन्दुस्तान’। समाजवादियों ने 1960 के दशक में नारा दिया था ‘धन और धरती बंट के रहेगी, भूखी जनता चुप न रहेगी’।
90 के दशक और बाद में घर-घर गूंजे थे ये नारे
“राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है” 1989 के चुनाव में वीपी सिंह को लेकर बना यह नारा काफी चर्चित हुआ था।
“सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे” “ये तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है”
“रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे” जैसे नारे राम मंदिर आंदोलन के दौर में भाजपा और संघ ने चलाए थे।
“राजीव तेरा ये बलिदान याद करेगा हिन्दुस्तान” 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने ये नारा दिया था।
“सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी” 1996 में भाजपा ने यह नारा दिया था।
“रोटी, कपड़ा और मकान, मांग रहा है हिन्दुस्तान” और “महंगाई को रोक न पाई, यह सरकार निकम्मी है, जो सरकार निकम्मी है, वह सरकार बदलनी है”। समाजवादियों ने यह नारा इंदिरा गांधी के खिलाफ दिया था।
“आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा जी को लाएंगे. इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर” जनता पार्टी के शासन से परेशान जनता की भावनाओं को भुनाने के लिए 1980 में कांग्रेस ने ये नारा दिया था।
“चढ़ गुंडन की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर” बसपा का यह नारा बहुत चला। वहीं विपक्ष ने नारा दिया था “गुंडे चढ़ गए हाथी पर गोली मारेंगे छाती पर”।
“मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्रीराम” 1993 में जब यूपी में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था तो भाजपा को लक्ष्य करता हुआ यह नारा काफी चर्चाओं में रहा।
लोकसभा के चुनाव में नारो का विशेष महत्व्व है इन नारो के बल पर ही राजनितिक पार्टिया चुनावी नैया पार लगाती है , एक बारे जिसके नारे जबान पर चढ़ा गयी उसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती चली जाती है,